तू कौन है ? II

Shashi Prakash
Unbound Diary
Published in
1 min readSep 16, 2017

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तुझे देखना चाँद के देखने से कम नहीं है,

तू हिरण की तरह तेज़ है,

संगीत में तेरी बातें ढूंढ़ता हूँ,

तेरी परछाई भी मन को आनन्दित कर देती है,

समझ नहीं आता कैसी भावना है ये,

पर जैसी भी है अच्छी है,

लेकिन एक सवाल अभी है,

तू कौन है?

ज्येष्ठ की कड़ी दुपहरी हो

या पौष की ठण्ड

अगर तू साथ हो तो सब सुहाना है,

तुझे घंटो तक सुन सकता हूँ,

पर अभी भी मैं नहीं जानता

कि तू कौन है?

तेरा मन चन्द्रमा की तरह शीतल है,

तू बहती नदी की तरह शांत है,

बोल नहीं पाता मैं,

पता नहीं किस चीज़ से डरता हूँ ?

शायद इसीलिए लिए जानना चाहता हूँ

कि तू कौन है ?

न हम दूर हैं

न हम पास हैं

दूर जा नहीं सकता

पास आने में डरता हूँ

कि तुम्हें खो न दूँ

इसीलिए मेरा जानना जरुरी है

कि तू कौन है ?

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